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जिस किसी ने भी ये कहा है कि इन्सान अकेला आता है और अकेला ही मर जाता है तो लगता है
क्योंकि इन्सान के पैदा होते ही पैदा होती हैं लाखों उमीदे, लाखों ख्वाईशे
जो वो खुद अपने से करता है और लोग उससे करते हैं
उसके पैदा होने से उसके मरने पर और वो जीवन भर इन्ही उमीदों और ख्वाईशों के वजन में दबकर ही रह जाता है
क्या होगा?