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प्राज़ावाद पर प्राज़ावाद पर...प्राज

पर प्राज़ावाद पर प्राज़ावाद...पर प

खुजब से मुझे और सुनेरी में लगती हूँ

सिर्फ लबों से लगी अग तो पूरे बदम से ही हसती हूँ

मेरे नाथ रात सरोने से ये सब है

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